किसकी तलाश में हो

किसकी तलाश में हो
क्या ढूंढ रहे हो तुम
क्या क्या याद है तुम्हे अब तलक
क्या खुद को ही भूल गए हो तुम
क्या तुम में वो बात है
क्या तुम्हारी औकात है
कौन से सवालों में उलझे हुए हो
किसके जवाब से परेशां हो तुम
आग है अभी भी या सिर्फ राख बची है तुम्हारे अंदर
भूख है कुछ पाने की या सिर्फ आस बची है तुम्हारे अंदर
तूफानों से लड़ पाओगे या पाँव उखड़ने का डर है तुम्हे
जीत जाने का जज़्बा है अभी भी या हार जाने का डर है तुम्हे
किस मौके के इंतज़ार में हो
किसकी फ़िराक में हो तुम

किसकी तलाश में हो
क्या ढूंढ रहे हो तुम
क्या क्या याद है तुम्हे अब तलक
क्या खुद को ही भूल गए हो तुम

क्यूँ बेचैन रहती है आँखे तुम्हारी
किस बात से हैरान हो तुम
हँसी रूकती नहीं देर तक तुम्हारे लबों पे
क्या मुस्कुराना भूल गए हो तुम
तुम्हारी क्या पहचान है
क्यूँ सब तुमसे अनजान हैं
किस अँधेरे में गुम हो
किस रौशनी की तलाश में हो तुम
भूलो मत के तुमने पथ के सारे शूल सहे हैं
जब जब तुमपे आंच आई हॅंस के सारे विघ्न सहे है
खड़े थे डटकर चट्टानों सा जब अपनों पे विपदा आई थी
लड़े थे तुम तब तूफानों से जब दरिया में कश्ती डगमगाई थी
तुम ही कहते थे सत्य अटल विजय सत्य की निश्चित है
फिर काहे की चिंता तुमको लेस मात्र का भय क्यों है
उठो चलो और कमर कसो मंज़िल पे ही अब रुकना है
निश्चय कर कदम बढ़ाओ अपने किसी मोड़ ना तुमको ठहरना है
किस बात की नाराजगी तुमको
क्या खुद से ही नाराज हो तुम
क्यों हथियार डाल दिये तुमने
क्यूँ इतने लाचार हो तुम

किसकी तलाश में हो
क्या ढूंढ रहे हो तुम
क्या क्या याद है तुम्हे अब तलक
क्या खुद को ही भूल गए हो तुम

“ऋतेश “

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *