"आज फिर जूते पहने है सुबह-सुबह"

आज फिर जूते पहने है सुबह-सुबह, आज फिर पूरे दिन नहीं उतरेंगे
वक़्त रेत सा फिसलेगा, हम लहरों से लड़ेंगे
नज़र साहिल से टकरायेगी, हम थक के भी ना थकेंगे

आज फिर होंगे कई यादगार लम्हे
आज फिर मिलेंगी कुछ खुशियाँ, कुछ सदमे
कुछ से रफीकी बढ़ेगी, कुछ खामखा रक़ीब बनेंगे
कुछ से जन्मों के रिश्ते बनेंगे, कुछ एक पल में बिखरेंगे

आज फिर कम हो जायेगा ज़िंदगी की डाल से दिन का एक पत्ता
आज फिर कहेगा कोई हमे सच्चा, कोई झूठा
तन कभी खरहे सा तेज़, कभी कछुए सा सुस्त होगा
आज फिर मन में कुछ नयी आकांक्षाओं के पौधे उगेंगे
आज फिर कुछ अधूरे तो कुछ पूरे होंगे

जीत की ख़ुशी लपेटे वक़्त का कोई टुकड़ा हमे हंसा देगा
कोई टुकड़ा हँसते हुए मुखड़े को आंसुओ से भीगा देगा
आज फिर कपडे धूल से सन जायेंगे
कल कहीं और थे, आज कहीं और जायेंगे

बात ज़िंदगी के एक दिन की नहीं, इसे जीने के तरीके की है
कुछ बातें लापरवाही की, कुछ सलीके की हैं
आज फिर जूते पहने है सुबह-सुबह, आज फिर पूरे दिन नहीं उतरेंगे
वक़्त रेत सा फिसलेगा, हम लहरों से लड़ेंगे
नज़र साहिल से टकरायेगी, हम थक के भी ना थकेंगे

“ऋतेश “

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