“क्या तुमने वो लड़की देखी है?”

क्या तुमने वो लड़की देखी है? अभी कुछ देर पहले जिसके ठहाकों से ये घर गूँज रहा था उसके नंगे ज़मीन से रगड़ते हुए पाओं की सरसराहट अभी तो गुजरी थी बगल से क्या तुमने वो लड़की देखी है? अपनी उलझी हुई लटों में उसने पूरा घर सुलझा रखा था घर में रौशनी रहे सूरज…

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“एक अज़नबी”

शहर में मिला था एक अज़नबी मुझसे बोला उसे मालूम है एक नयी छुपी हुई दुनिया तलक जाने का रास्ता वो वाकिफ है एक जादुई सीढ़ी से जो वहाँ तक जाती है रास्ता बहुत आसान है और सफर बहुत छोटा है उसकी बातो में सिर्फ और सिर्फ सच्चाई झलक रही थी और उसकी भूरी आँखों…

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"वो रौबदार मूंछो वाला आदमी"

वो रौबदार मूंछो वाला आदमी बड़ा मायूस है बेटी की विदाई ने उसकी सूखी आँखों को डबा-डब कर दिया है आखिर बड़े ही नाज़ों से पाला था उसे अब दूसरे की उंगली थमा दी है उम्र भर के लिए बेटी कितनी बड़ी हो गई है अब जाके उसे एहसास हुआ नम आँखों से एक बाप…

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"सुबह के ६ बजे दरवाजे पे दस्तक पर"

सुबह के ६ बजे दरवाजे पे दस्तक पर माँ ने दरवाजा खोला कोदई की माँ बर्तन धोने आई थी हम दुबके पड़े थे रजाई की आगोश में भरी शीतलहर में, कोदई की माँ मील चलकर आई थी माँ रोज कहती, अम्मा इतनी ठण्ड में मत आया करो बूढ़े बदन में ठण्ड लग जाएगी, घर पे…

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"सुबह तक रख ले ना आज चाँद को अपने आँचल में"

सुबह तक रख ले ना आज चाँद को अपने आँचल में कल पहली किरण के साथ ही अलविदा कह दूंगा चला जाऊंगा चाँद को साथ लेकर कहीं बहुत दूर, तेरे दिन के उजाले से कल से बस इसके हिस्से में अमावस होगी, वादा करता हूँ देख ना कैसे तड़प रहा है तेरी पनाह पाने को,…

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"पलकों पर ही रखा था"

पलकों पर ही रखा था उसे और उसके ख्वाब को आँखे खोली दोनों फिसल गए वो सदियों के लिए रूठ गया मुझसे मैं और मेरे ख्वाब टूटकर बिखर गए मेरे ही पहलू में “ऋतेश “

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"कलाम चला गया"

‘मिसाइल मैन’  ‘भारत रत्न’ ‘पूर्व राष्ट्रपति’ डा.ए पी जे अब्दुल कलाम भाव भीनी श्रद्धांजलि  ……………. सपने कैसे देखते हैं, वो बड़ी ज़ुल्फ़ों वाला सिखा गया जाते जाते वो फिर से इंकलाब जगा गया सुना है जबसे स्तब्ध है ये दिल, आसमां भी रो रहा है वो बड़ी ज़ुल्फ़ों वाला “कलाम” चला गया ख़ूबसूरती दिल में…

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‘चाँद की दूधिया रौशनी में’

चाँद की दूधिया रौशनी में रात की पगडण्डी पे कल कुछ सिरफिरे ख्वाबों ने वापस से बगावत कर दी इस बात को लेकर के वो बस ख्वाब ही रहना नहीं चाहते थे क्यूंकि वो बेहद ऊब चुके थे अपने सच होने के इंतज़ार में आखिर उनमे से कुछ बूढ़े सपने भी तो थे, जो बरसो…

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"वो लड़का खामोश खड़ा"

वो लड़का खामोश खड़ा खिड़की से उस बिलकुल नए सूरज की ओर देख रहा था जो सुबह-सुबह अपनी पीली धूप से उसकी आँखे चकाचौंध कर रहा था बहुत तेज़ी से उसका सब कुछ उससे छूट रहा था जैसे सर्द रात की ओस घांस में अटकी रही हो, इठला रही हो अपने जीवन पे पर सहसा…

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