"रंग-बिरंगी इस दुनियां में"

रंग-बिरंगी इस दुनियां में, मै आज क्यूँ इतना बेरंग सा हूँ फैली हुई इस धरती पे, मैं आज क्यूँ इतना तंग सा हूँ सांसे कुछ घुटी-घुटी सी हैं, हूँ आज परेशान हालातों से सुलझी हुई कुछ बातों में, मैं आज क्यूँ इतना उलझा सा हूँ रंग-बिरंगी इस दुनियां में, मै आज क्यूँ इतना बेरंग सा…

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"आसमाँ आज तारों से नहीं भरा है"

आसमाँ आज तारों से नहीं भरा है काली बदलियाँ घिरी पड़ी हैं रातरानी के फूल खिल गए हैं मद्धम मद्धम बूंदे पड़ रही हैं और हवाएँ महक रही हैं मैं ऐसा हूँ के जैसा नहीं हूँ, मैं जैसा था, अब वैसा नहीं हूँ हर तरफ अँधेरा सा है, और मैं लाचार हूँ ज़िंदगी की कश्मकश…

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"कैंटीन की वो तेरह सीढ़ियां"

कैंटीन की वो तेरह सीढ़ियां बड़ी मायूस हैं, ए दोस्त खामोश रहकर भी जाने कितने सवाल कर जाती हैं उन सीढ़ियों के साथ मुझे भी यकीन  है, वो लम्हे तुम भी भुला नहीं पाये होगे | ये वो तेरह सीढ़ियां हैं जहाँ पर कुछ चेहरों की मुस्कराहट एक पोटली में बंधी है और सब उसे…

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"तू पास नहीं तो क्या हुआ"

तू पास नहीं तो क्या हुआ हर रोज़ तेरे ख्वाबो से ज़रा सी ज़िंदगी उधार लेता हूँ फिर निकल पड़ता हूँ एक सुनसान सड़क पर, तुम्हारी तलाश में जो शाम तक मुझे थकाकर, फिर ले आती है तुम्हारे ख्वाबों के पनाह में थोड़ी सी ज़िंदगी उधार मांगने “ऋतेश “

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"अभी- अभी तो उड़ना सीखा था"

अभी-अभी तो उड़ना सीखा था हवाओं से लड़ना सीखा था वक़्त ने हमारे पर काट लिए अभी अभी तो मुस्कुराना सीखा था तमन्ना थी की आसमाँ को नापेंगे है दम कितना खुद में ये जाचेंगे पर पहली ही उड़ान में तूफ़ान आ गया हमने तो अभी इस डाल से उस डाल पर फुदकना सीखा था…

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"मैं कैसे भूल सकता हूँ "

वो मंज़र वो समंदर, मैं कैसे भूल सकता हूँ वो उजली रात, वो मीठी बात, मैं कैसे भूल सकता हूँ तेरा खिड़की के किनारे से मुझको तकना वो आँखों के इशारे से शिकायत करना वो हर याद, वो मुलाकात, मैं कैसे भूल सकता हूँ वो मंज़र वो समंदर, मैं कैसे भूल सकता हूँ है तू…

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"माँ अब नींद नहीं आती"

माँ अब नींद नहीं आती बस तेरी याद सताती है एक शिकायत है तुझसे अब तू लोरी नहीं सुनाती है रातें बिन सपनो की हैं दुनियां बिन अपनों की है वैसे तो कोई दर्द नहीं बस तेरी याद रुलाती है माँ अब नींद नहीं आती बस तेरी याद सताती है एक शिकायत है तुझसे अब…

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"कहाँ गयीं वो कहानियाँ भरी रातें "

कहाँ गयीं वो कहानियाँ भरी रातें घर के बुजुर्गों की सहूलियत भरी बातें चूल्हे पर सिकीं वो रोटियां कहाँ छिपाई है माँ ने मिठाई, रास्ता बताती वो चीटींया कहाँ गए वो खेलने कूदने के दिन कहाँ गयी वो मस्तियाँ बहते वक़्त में छूट गए वो हंसी किनारे कट जाएगी ज़िंदगी उन यादों के सहारे अब…

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