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"सुबह के ६ बजे दरवाजे पे दस्तक पर"

सुबह के ६ बजे दरवाजे पे दस्तक पर माँ ने दरवाजा खोला कोदई की माँ बर्तन धोने आई थी हम दुबके पड़े थे रजाई की आगोश में भरी शीतलहर में, कोदई की माँ मील चलकर आई थी माँ रोज कहती, अम्मा इतनी ठण्ड में मत आया करो बूढ़े बदन में ठण्ड लग जाएगी, घर पे…

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"सुबह तक रख ले ना आज चाँद को अपने आँचल में"

सुबह तक रख ले ना आज चाँद को अपने आँचल में कल पहली किरण के साथ ही अलविदा कह दूंगा चला जाऊंगा चाँद को साथ लेकर कहीं बहुत दूर, तेरे दिन के उजाले से कल से बस इसके हिस्से में अमावस होगी, वादा करता हूँ देख ना कैसे तड़प रहा है तेरी पनाह पाने को,…

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"ऐसा नहीं है तुझे तुझसे छीन रहा हूँ मैं"

ऐसा नहीं है तुझे तुझसे छीन रहा हूँ मैं ऐ ज़िंदगी, तेरी ज़िंदगी में कुछ नए रंग भर रहा हूँ मैं फिसल गया था कभी ज़माने की अंधी दौड़ में जो तेरी उंगली थामकर आहिस्ता-आहिस्ता फिर से चल रहा हूँ मैं इक लौ जो बुझ गयी थी सीने में पिछली आँधियों में वो आग फिर…

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"पलकों पर ही रखा था"

पलकों पर ही रखा था उसे और उसके ख्वाब को आँखे खोली दोनों फिसल गए वो सदियों के लिए रूठ गया मुझसे मैं और मेरे ख्वाब टूटकर बिखर गए मेरे ही पहलू में “ऋतेश “

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"कलाम चला गया"

‘मिसाइल मैन’  ‘भारत रत्न’ ‘पूर्व राष्ट्रपति’ डा.ए पी जे अब्दुल कलाम भाव भीनी श्रद्धांजलि  ……………. सपने कैसे देखते हैं, वो बड़ी ज़ुल्फ़ों वाला सिखा गया जाते जाते वो फिर से इंकलाब जगा गया सुना है जबसे स्तब्ध है ये दिल, आसमां भी रो रहा है वो बड़ी ज़ुल्फ़ों वाला “कलाम” चला गया ख़ूबसूरती दिल में…

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"तुझे ख्वाब लिखूं, मेहताब लिखूं, आरज़ू लिखूं, ज़ुस्तज़ू लिखूं या कुछ और"

तुझे ख्वाब लिखूं, मेहताब लिखूं, आरज़ू लिखूं, ज़ुस्तज़ू लिखूं या कुछ और तेरा मासूम सा अल्हड़पन छेड़ देता है मन के सारे तार और गूँज उठता है इक संगीत आबो-हवा में सच कहूँ तपती रेत में पहली बरसात सी लगती है तू मुझे बहका देती है तेरी कस्तूरी जब तू गुज़रती है हिरनी सी मदमस्त…

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"फुरसत नहीं इबादत की तो खुदा से"

फुरसत नहीं इबादत की तो खुदा से तो शिकायत ना करें ना जीत सकें औरो से, तो अपनों से ना लड़े उलझने कम नहीं हैं इस ज़माने में, इन्हे और न बढ़ाएं सुलझाएं इन्हे खुद से, औरों पे न मढ़े माना उलझी हैं, हाथों और माथे की लकीरें चलें वक़्त के साथ, वक़्त से न…

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