"रंग-बिरंगी इस दुनियां में"

रंग-बिरंगी इस दुनियां में, मै आज क्यूँ इतना बेरंग सा हूँ
फैली हुई इस धरती पे, मैं आज क्यूँ इतना तंग सा हूँ

सांसे कुछ घुटी-घुटी सी हैं, हूँ आज परेशान हालातों से
सुलझी हुई कुछ बातों में, मैं आज क्यूँ इतना उलझा सा हूँ
रंग-बिरंगी इस दुनियां में, मै आज क्यूँ इतना बेरंग सा हूँ

हवाओं में इक ठंडी महक है, और आसमान कुछ साफ़ है
पर चमकते हुए सितारों में, मैं आज क्यूँ इतना धुंधला सा हूँ
रंग-बिरंगी इस दुनियां में, मै आज क्यूँ इतना बेरंग सा हूँ

पहले भी दर्द हुआ मुझको, पहले भी अश्क़ बहे मेरे
फिर आँखों में कुछ बूंदो से, मैं आज क्यूँ इतना दंग सा हूँ
रंग-बिरंगी इस दुनियां में, मै आज क्यूँ इतना बेरंग सा हूँ

है सहा मैंने तूफानों को, शोलों पे भी पदचिन्ह रचे
पर वक़्त के अनकहे कुछ प्रश्नो से, मैं आज क्यूँ ऐसे बेल्फ़ज़ सा हूँ

रंग-बिरंगी इस दुनियां में, मै आज क्यूँ इतना बेरंग सा हूँ
फैली हुई इस धरती पे, मैं आज क्यूँ इतना तंग सा हूँ

“ऋतेश “

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