“मैं इंसान ही जन्मा था मैं इंसान ही मरूंगा”

हर बात में एक कहानी छुपी है जिसके पीछे किरदार छिपे है अलग-अलग नक़ाब लगाए हुए, छुपाते है अपनी असल शक़्ल को इस क़दर जो कभी सामना हो खुद का आईने से तो खुद की आँख भी धोखा खा जाये और नक़ाब ओढ़े हुए किरदार को खुद भी ना पहचान पाए यही फलसफा है दुनिया…

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"इक और साल गुज़र रहा है"

इक और साल गुज़र रहा है, कुछ नमकीन कुछ मीठी यादें देकर इक नया साल सामने खड़ा है, वक़्त के अनजान टुकड़ों को पोटली में बांधकर नए लिबास में कितना मासूम दिख रहा है अपनी पलकें खोलने को बेकरार खड़ा है उमीदों का बहुत बोझ होगा इस आने वाले साल पर कई अनसुलझे सवालों के…

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"छुपा लूंगा दर्द के हर निशाँ"

छुपा लूंगा दर्द के हर निशाँ और डाल दूंगा मिट्टी की इक मोटी परत उनपे वापस बोऊंगा नए बीज कल्पनाओं के, सपनों के खड़ा करूँगा इक नया पेड़, भले इक सदी खर्च दूँ फिर से पर मैं नहीं पहनूंगा कोई नक़ाब मैं नहीं बदलूंगा वक़्त की किसी चाल पे बनाऊंगा इक नया आशियाँ इक नया…

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"हवा चली, पत्ते हिले"

हवा चली, पत्ते हिले, कुछ टूट गए, कुछ लगे रहे कुछ को कीड़ों ने खाया था, कुछ ताज़ा थे कुछ सड़े-गले सबकी ख्वाहिश सब जुड़े रहे, पर मौत कहा वो टाल सके किस पल को रुखसत होना है, ये राज़ कहा वो जान सकेकुछ के जाने पर कुछ रोये, कुछ से सब अनजान रहे कुछ…

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