"हैं ढेरों कश्तियाँ सामने मेरे"

हैं ढेरों कश्तियाँ सामने मेरे
समझ नहीं आता किसे साथ लेकर दरिया पार हो जाऊँ
या डूब कर दरिया का ही हो जाऊं

“ऋतेश””

 

 

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