RItesh Kumar Mishra

"तुझे ख्वाब लिखूं, मेहताब लिखूं, आरज़ू लिखूं, ज़ुस्तज़ू लिखूं या कुछ और"

तुझे ख्वाब लिखूं, मेहताब लिखूं, आरज़ू लिखूं, ज़ुस्तज़ू लिखूं या कुछ और तेरा मासूम सा अल्हड़पन छेड़ देता है मन के सारे तार और गूँज उठता है इक संगीत आबो-हवा में सच कहूँ तपती रेत में पहली बरसात सी लगती है तू मुझे बहका देती है तेरी कस्तूरी जब तू गुज़रती है हिरनी सी मदमस्त…

Read More

"फुरसत नहीं इबादत की तो खुदा से"

फुरसत नहीं इबादत की तो खुदा से तो शिकायत ना करें ना जीत सकें औरो से, तो अपनों से ना लड़े उलझने कम नहीं हैं इस ज़माने में, इन्हे और न बढ़ाएं सुलझाएं इन्हे खुद से, औरों पे न मढ़े माना उलझी हैं, हाथों और माथे की लकीरें चलें वक़्त के साथ, वक़्त से न…

Read More

"जो कह ना पाई बात तुमसे"

जो कह ना पाई बात तुमसे, आज फिर कैसे कहूँ होंठो पर ही है रखी, ज़ज़्बात तुमसे क्या कहूँ वो पहली झलक, कमसिन अदा वो झुकती पलक, गालों पर हया तेरे दीदार का असर कुछ इस तरह मुझ पर हुआ मुझमे मैं अब मैं नहीं, तू ही तू बस तू रहा है दब गई जो…

Read More

"मज़बूर हूँ, आ नहीं सकता तेरी पनाह में "

मज़बूर हूँ, आ नहीं सकता तेरी पनाह में गुस्ताख़ हवा का इक झोंका भेजा है हौले से तुम्हे छू कर गुज़र जायेगा बिखरी हुई जुल्फों को खुद ना सुलझाना उन्हें रहने देना थोड़ी देर, लाल सुर्ख गालों पर, इठलाने देना मैं कल लौटूंगा तो उन्हें कान के पीछे आहिस्ते से लगा दूंगा मज़बूर हूँ, आ…

Read More

"तेरी उंगली थामकर"

तेरी उंगली थामकर ज़िंदगी के जिस मोड़ से मैं निकल चुका हूँ मैं जाना नहीं चाहता वहां वापस कभी, ना ही चाहता हूँ के ये कारवां थमे कहीं बस यूँ ही चलता रहूँ, मुस्कुराता रहूँ, तुम्हे मुस्कुराता देखकर मैंने छोड़ दिया था अपने ग़मों का पिटारा वहीँ उसी मोड़ पर कहीं जब देखा था तेरे माथे…

Read More

‘चाँद की दूधिया रौशनी में’

चाँद की दूधिया रौशनी में रात की पगडण्डी पे कल कुछ सिरफिरे ख्वाबों ने वापस से बगावत कर दी इस बात को लेकर के वो बस ख्वाब ही रहना नहीं चाहते थे क्यूंकि वो बेहद ऊब चुके थे अपने सच होने के इंतज़ार में आखिर उनमे से कुछ बूढ़े सपने भी तो थे, जो बरसो…

Read More

"इक और साल गुज़र रहा है"

इक और साल गुज़र रहा है, कुछ नमकीन कुछ मीठी यादें देकर इक नया साल सामने खड़ा है, वक़्त के अनजान टुकड़ों को पोटली में बांधकर नए लिबास में कितना मासूम दिख रहा है अपनी पलकें खोलने को बेकरार खड़ा है उमीदों का बहुत बोझ होगा इस आने वाले साल पर कई अनसुलझे सवालों के…

Read More

"वो लड़का खामोश खड़ा"

वो लड़का खामोश खड़ा खिड़की से उस बिलकुल नए सूरज की ओर देख रहा था जो सुबह-सुबह अपनी पीली धूप से उसकी आँखे चकाचौंध कर रहा था बहुत तेज़ी से उसका सब कुछ उससे छूट रहा था जैसे सर्द रात की ओस घांस में अटकी रही हो, इठला रही हो अपने जीवन पे पर सहसा…

Read More

"सरोज दिन-रात बुनती है कुछ मीठे सपने"

सरोज दिन-रात बुनती है कुछ मीठे सपने फिर उधेड़ती है, वापस बुनती है और थोड़ी देर में भूल जाती है सपनों के ऊन का गोला कहीं फिर झुंझलाती है, और बेरंग हो जाते हैं उसके सारे सपने……………………………………………………. मैंने बेहद करीब से देखा है, इक मासूम सा बचपन अभी भी तैरता है उसकी आँखों में जो…

Read More