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“आजादी सबको है पर”

आजादी सबको है पर हर आज़ादी के कुछ कायदे और कानून है वो भी इसलिए क्यूँकि कल अगर आजादी के साथ जुड़ी हुई सारी सीमायें हटा दी जाये तो इंसान ईश्वर को चुनौती देकर खुद को ही भगवान मान बैठेगा और फिर एक अनसुनी और अनहोनी जंग छिड़ेगी खुद को इकलौता ईश्वर बताने की आज…

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“तू परेशान है तो आसानी किसको है”

तू परेशान है तो आसानी किसको है सब कुछ यूँ ही मिल जाये तो परेशानी किसको है वो बहक गया देखा – देखी कल मै भी जो बहक जाऊं तो हैरानी किसको है लुट रहा है मुल्क चलो हम भी कुछ लूट लें मुफ्तखोरी से भला इस मुल्क में बदहज़मी किसको है तू परेशान है…

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“क्या तुमने वो लड़की देखी है?”

क्या तुमने वो लड़की देखी है? अभी कुछ देर पहले जिसके ठहाकों से ये घर गूँज रहा था उसके नंगे ज़मीन से रगड़ते हुए पाओं की सरसराहट अभी तो गुजरी थी बगल से क्या तुमने वो लड़की देखी है? अपनी उलझी हुई लटों में उसने पूरा घर सुलझा रखा था घर में रौशनी रहे सूरज…

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“नहीं शौक तुझसे आज़माइश करूँ मैं”

नहीं शौक तुझसे आज़माइश करूँ मैं तुमसे बेहतर ही था तुमसे बेहतर ही हूँ वक़्त की टिकटिक पर कब टिका हूँ मैं आवारा ही था आवारा ही हूँ आवारा ही था आवारा ही हूँ! “ऋतेश“

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“नज़्म जो लिखे थे तुम पर”

नज़्म जो लिखे थे तुम पर कई साल पहले सर्दियों में जाने कहाँ छिटक कर गिर गए हैं वो मेरी डायरी से मैंने बहुत ढूँढा पर कहीं ना मिला अब तक कुछ भी हाँ मगर धुंधला सा याद है थोड़ा बहुत जोड़ कर देखूंगा हर्फ़ दर हर्फ़ शायद कहीं वो अधूरी नज़्म मुकम्मल हो जाये…

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“मैं इंसान ही जन्मा था मैं इंसान ही मरूंगा”

हर बात में एक कहानी छुपी है जिसके पीछे किरदार छिपे है अलग-अलग नक़ाब लगाए हुए, छुपाते है अपनी असल शक़्ल को इस क़दर जो कभी सामना हो खुद का आईने से तो खुद की आँख भी धोखा खा जाये और नक़ाब ओढ़े हुए किरदार को खुद भी ना पहचान पाए यही फलसफा है दुनिया…

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