"सरोज दिन-रात बुनती है कुछ मीठे सपने"
सरोज दिन-रात बुनती है कुछ मीठे सपने फिर उधेड़ती है, वापस बुनती है और थोड़ी देर में भूल जाती है सपनों के ऊन का गोला कहीं फिर झुंझलाती है, और बेरंग हो जाते हैं उसके सारे सपने……………………………………………………. मैंने बेहद करीब से देखा है, इक मासूम सा बचपन अभी भी तैरता है उसकी आँखों में जो…