“नज़्म जो लिखे थे तुम पर”

नज़्म जो लिखे थे तुम पर कई साल पहले सर्दियों में जाने कहाँ छिटक कर गिर गए हैं वो मेरी डायरी से मैंने बहुत ढूँढा पर कहीं ना मिला अब तक कुछ भी हाँ मगर धुंधला सा याद है थोड़ा बहुत जोड़ कर देखूंगा हर्फ़ दर हर्फ़ शायद कहीं वो अधूरी नज़्म मुकम्मल हो जाये…

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"जो कह ना पाई बात तुमसे"

जो कह ना पाई बात तुमसे, आज फिर कैसे कहूँ होंठो पर ही है रखी, ज़ज़्बात तुमसे क्या कहूँ वो पहली झलक, कमसिन अदा वो झुकती पलक, गालों पर हया तेरे दीदार का असर कुछ इस तरह मुझ पर हुआ मुझमे मैं अब मैं नहीं, तू ही तू बस तू रहा है दब गई जो…

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