"तेरी उंगली थामकर"

तेरी उंगली थामकर ज़िंदगी के जिस मोड़ से मैं निकल चुका हूँ
मैं जाना नहीं चाहता वहां वापस कभी, ना ही चाहता हूँ के ये कारवां थमे कहीं
बस यूँ ही चलता रहूँ, मुस्कुराता रहूँ, तुम्हे मुस्कुराता देखकर

मैंने छोड़ दिया था अपने ग़मों का पिटारा वहीँ उसी मोड़ पर कहीं
जब देखा था तेरे माथे पर फिसलती हुई पसीने की बूंदों को मेरी हथेली पर गिरते हुए
तेरी काजल से सनी डबडबाई हुई आँखों में मैंने बीते कल के ढेरों चुभे हुए कांटे देखे थे उस दिन
तभी तो भूल बैठा था अपने दिल में चुभे हुए काँटों को

अब हर धूप बदली सी लगती है मुझे, हवाएँ खुश्क सी लगती हैं
जब से तू आ गया है दिल के गाँव में बसने, हर शाम दिल के नुक्कड़ पे हलचल सी रहती है
मैं तेरे इश्क़ में मरना नहीं चाहता, बस तुझे देखता हूँ तो
तेरे पहलु में जीने की ख्वाहिश और बढ़ जाती है

मैं तेरे इश्क़ के काबिल हूँ या नहीं मैं नहीं जानता, मैं बस इतना जानता हूँ
मेरी मौजूदगी तेरे लबों पे मुस्कान बनकर बिखर जाती है
तू गूंजती है जब भी इर्द-गिर्द मेरे, मेरी आँखों में चमक दिल में ठंडक सी रहती है
तेरी उंगली थामकर ज़िंदगी के जिस मोड़ से मैं निकल चुका हूँ, मैं जाना नहीं चाहता वहां वापस कभी…………………………………………

“ऋतेश “

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