‘चाँद की दूधिया रौशनी में’

चाँद की दूधिया रौशनी में रात की पगडण्डी पे
कल कुछ सिरफिरे ख्वाबों ने वापस से बगावत कर दी
इस बात को लेकर के वो बस ख्वाब ही रहना नहीं चाहते थे
क्यूंकि वो बेहद ऊब चुके थे अपने सच होने के इंतज़ार में

आखिर उनमे से कुछ बूढ़े सपने भी तो थे, जो बरसो से अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे
मैंने आँख के इशारे से इक बेहद छोटे से सपने को पगडण्डी के किनारे बुलाया और पूछा
तेरी बगावत क्यूँ है, तू तो बहुत भोला है, मान जा, औरो को भी मना
उनसे बोल के नींद की पगडण्डी से अपना ये हुजूम हटा लें
मैंने उस नन्हे ख्वाब से चंद और चाँद की दूधिया रौशनी मांगी

उस नन्हे से ख्वाब ने उन सैकड़ो बूढ़े ख़्वाबों को मना लिया है कुछ और दूधिया रातों के लिए
पर क्या मैं उन ख्वाबों में कभी जान डाल पाउँगा?
ये सोचकर मैं कई रात नींद की पगडण्डी पर जाता ही नहीं
जागता रहता हूँ इस डर से के कहीं कोई ख्वाब फिर से बगावत न कर दे। ………………….

“ऋतेश “

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *